इल्तेजा
आज दोबारा उनको दूर से देखा |
चलो, वो दिख गए ये भी काफी है |
चाहते तो थे की उनसे मुखातिब होते
उनकी महफ़िल में हम भी शामिल होते |
वो हमारी और हम उनकी आँखों में देखकर
एक दूसरे की खैरियत पूछते |
कुछ कहानियां वो दोहराते
और कुछ क़िस्से हम सुनाते |
उनसे कोई सवाल न करते
बस उनके जवाबों को सवाल दे आते |
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