आज़ादी की पुकार
ना तुम्हें ज़रूरत है
ना हमें दरकार है।
बड़ी बेइमानी फिर
ये आज़ादी की पुकार है।
पहली और आखिरी शर्त है
कि कोई शर्त ना हो।
पर यहां तो मांगों की
एक लंबी कतार है।
बड़ी बेईमानी
ये आजादी की पुकार है।
शर्त हमवारी , दाद ओर इंसाफ की
शर्त इज़्ज़त, हिफाज़त और अख़लाक़ की।
बेशर्त ये हमें नागवार है।
बड़ी बेईमानी फिर
ये आज़ादी की पुकार है।
वो इश्क, नफरत और शौहरत
में हैं डूबे
तो तुम्हें सरपरस्ती का खुमार है।
बड़ी बेईमानी फिर
ये आज़ादी की पुकार है।
ये वो तोहफा है
जिसे कबूल तुम कर सकते नहीं।
क्या छीन लेंगें
जो वो खुद खोने को बेकरार है।
हाँ बड़ी बेईमानी फिर
ये आज़ादी की पुकार है।
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